समाज का कड़वा सच-15

राम राम दशरत भजे, रही न राम की आस, पुत्र मोह में पिता तरसे, कौन बुझाये प्यास, मृत्यु ऐसी बाबरी, जिसकी ना ढीली पाश, तपोवन की अग्नि है वह, पेड़ बसे न घास , घायल हृदय को कौन समझाए, मौन खड़ी यह भीड़, बंधु बांधव मिलकर, कब तक बचाए नीड..

रमन की ओर देखते हुए कैलाश बोला, छोड़िए साहब ,जो आप को लेकर निकले तो इसकी गाड़ी पंचर हो जाए, क्योंकि अब इसका काम हो चुका है, कहते हुए उसने तुरंत दौड़कर अपनी गाड़ी निकाली और मुझे चलने का इशारा किया। वह तुरंत उसकी गाड़ी पर बैठा और देखते ही देखते कैलाश मानो किसी जंग की तैयारी में निकला हो, बड़ी तीव्र गति से अस्पताल की ओर भागा, मैंने आज तक उसकी गाड़ी पर कभी भी सफर नहीं किया था क्योंकि जरूरत ही ना पड़ी, मैंने उसे समझाया कि थोड़ा संभलकर गाड़ी चलाएं तो मानो वह जोश से भरे हुए शब्दों में बोला,,,,सर यह गाड़ी भी उन्हीं की देन है और मैं भी उन्ही का तो फिर कैसी चिंता.... आप दिल थाम कर बैठिए,आपको कुछ नहीं होने दूंगा....

              वास्तव में उसने कुछ चंद मिनटों में मुझे अस्पताल के दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया। वह दौड़ते हुए एक कंपाउंडर के पास गया, ऐसा लगा जैसे वह उसे पहले से जानता था और कुछ बात कर तेजी से चिल्लाया...... साहब इधर आइये......और वह कंपाउंडर के साथ आगे बढ़ने लगा।
          मैं भी उसका अनुसरण कर चलने लगा, क्योंकि आज तक मुझे यहां आने की जरूरत ही ना पड़ी थी, और ना ही भीरू के परिवार से आज तक कोई यहां लाया गया था, इसलिए हमारे लिए सब कुछ नया था।
          मैं चुपचाप कैलाश के साथ उसके पीछे-पीछे चलने लगा और कुछ सीढ़ियां चढ़ने के बाद सेकंड फ्लोर पर बाइस  नंबर कमरे में जाकर रुक गया, वहां जाकर देखा तो भीरूका छोटा लड़का और कुछ चंद रिश्तेदार दरवाजे के बाहर खड़े थे... और कुछ एक बुजुर्ग भीरूके पिताजी को समझा रहे थे, लेकिन वह है कि किसी की बात मानने को तैयार ही नहीं।

              कैलाश ने वहां की स्थिति का जायजा लिया और नर्स और कंपाउंडर के कान में कुछ बोला और मेरे साथ आकर भीरु के पिताजी को समझाने लगा, मैंने काफी मशक्कत के बाद उन्हें शांत किया और तब तक कैलाश ने जिनसे बात की थी, वह नर्स और कंपाउंडर कुछ दवाइयां और इंजेक्शन ले कर आ गए, लेकिन उन्होंने दवाइयों को लेने से इनकार कर दिया।
                  बमुश्किल कैलाश ने उन्हें समझाकर सिर्फ एक इंजेक्शन लेकर घर जाने की बात कह तैयार किया, मुझे ना जाने क्यों पहली दफा कैलाश पर शक हुआ और यह मेरा शक सही निकला कि जैसे ही वह इंजेक्शन उनको लगाया गया, थोड़े ही देर में उन्हें नींद आने लगी और वो सो गए, तब कैलाश ने मुझे बताया कि वह इसके पहले भी अपने पिताजी को लेकर आ चुका और ना मनाने की स्थिति में यही तरीका उनके पास बचता था, जिसे उसने भीरु के पिताजी पर भी अपनाया।

       देखते ही देखते वो गहरी नींद में सो गए और जितनी भी दवाई और इंजेक्शन थे, कैलाश के एक इशारे पर सलाईन  के माध्यम से दिए जाने लगे, मैं आश्चर्यचकित था कि जिस कैलाश को हम इतना सामान्य और अपने आप में खोया हुआ समझते थे, वह कितना सुलझा हुआ और अनुभवी व्यक्तित्व का है।
      देखते ही देखते वहां खड़े सभी लोग जैसा कि सभी जगह होता है, बारी बारी से धीरे-धीरे खिसकने लगे। मात्र मैं, भीरु का बेटा और कैलाश, मात्र हम तीन ही शेष बचे।

         तभी डॉक्टर ने आकर जैसे ही कैलाश को देखा, तुरंत पूछा, कैसा कैलाश???? पिताजी कैसे हैं तुम्हारे ????और यहां कैसे ????यह भीरुके पिताजी है, क्या जिसके बारे में तुम बताया करते थे।
         कैलाश ने विनम्रता पूर्वक कहा जी सर,  यह उन्हीं महान पुरुष के पिताजी है, जैसे भी हो जो लगे अच्छा करें....
                डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, आधा काम तो तुम कर ही चुके हो, बाकी हम देख लेंगे, बस आगे की तरह भीड़ मत बढ़ाना,  यहां बेकार की भीड़ अलाउ नहीं, और वैसे भी मरीज की तबीयत डिप्रेशन में नींद ना होने के कारण हुई है।

          थोड़ी पानी की कमी थी, उसके लिए सलाइन चलती रहेगी, कोई परेशानी की बात नहीं है जो इंजेक्शन दिया गया है, उसका असर कम से कम छः घंटे रहेगा।
             तब तक तो सभी दवाइयां और सलाइन चढ़ाकर भी हो जाएगी,  इन्हें होश आते ही सिर्फ आधा घंटा के ऑब्जरवेशन के बाद तुम घर ले जा सकते हो और फीस की चिंता मत करना वह इनके लिए माफ है.......

जिसके जवाब में तुरंत भीरु का बेटा बोला, आखिर क्यों सर??? तब डॉक्टर ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, बेटा तुम्हें शायद अपने पिता को समझने में, उनके जाने के बाद भी समय लगेगा.....मैं सिर्फ इतना कहूंगा इंसान के कर्म ही उसकी पहचान बनाते हैं, और मैं भी फिर भीरू पर एहसान नहीं कर रहा.....मेडिकल कार्ड पर पचास प्रतिशत की छूट थी, और बाकी मेरी तरफ से मेरे कोटे में..... क्योंकि भीरु ही एकमात्र ऐसा शख्स था जिसने मेरे पिताजी के बीमार होने पर आगे बढ़कर मदद की, और लगातार तीन महीने तक उन्हें रक्तदान करता रहा, यह कहते हुए अत्यंत गर्व महसूस कर रहे थे और उनकी नम आंखें भीरु का एहसान बयां कर रही थी........

क्रमशः........

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